Thursday, December 27, 2012

तेज़ी से बुलंदियां छू रहा गौरव सग्गी

बालीवुड में फिर लुधियाना की मौजूदगी का अहसास
पंजाबी फिल्मों की बात चले तो जो नाम और चेहरे एकदम जहन में आते है उनमें से एक चेहरा है सरदार भाग सिंह का। चंडीगढ़ के बस स्टैंड से बाहर निकलते ही सडक पार करके उनके घर में जाना किसी वक्त रोज़ की बात हुआ करती थी। वक्त की गर्दिश में फिर यह सिलसिला न चाहते हुए ही लगातार कम होता चला गया। यहाँ रोज़ी रोटी के फ़िक्र में ऐसे सिलसिले अक्सर कम हो जाते हैं। पर उनकी जो बातें अब तक जहन में हैं उनमें से एक है सोमवार। वह सोमवार को उपवास रखते थे। भगवान् शिव में उनकी गहरी आस्था थी। शिव का नटराज रूप उनके ड्राईंग रूम में भी सजा होता। कभी मूड होने पर वह भगवान् शिव और कला की विस्तृत चर्चा भी करते। 
Photo Courtesy:Sara Tariq
इसी तरह गायन और अभिनय के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाने वाली सुलक्षना पंडित भी बहुत अध्यात्मिक थी।सर्दी हो या ओले बरस रहे हों हर रोज़ सुबह पूरे केशों सहित स्नान करना और फिर पूजा पाठ में काफी समय गुज़ारना उनकी दिनचर्या में शामिल था। उनकी आवाज़ में भी जादू सा था और अभिनय में भी। बहुत सी लोकप्रिय फिल्मों में यादगारी भूमिका निभा पाना और फिर फिल्म फेयर एवार्ड भी हासिल कर लेना कोई आसान बात नहीं थी। हालाँकि उनके सामने चुनौती भी सख्त थी और प्रतियोगिता भी। 
दर्शकों के मन में हनुमान जी की छवि बनने के बाद दारा सिंह जी भी धर्म कर्म में बहुत रुचि लेने लगे। शायद यही कारण है कि दर्शक उनमें हनुमान जी को ही देखने लगे। पहले पहले मुझे लगता था की शायद इस तरह के सात्विक किस्म के लोग तामसिक प्रवृतियों से भरी फ़िल्मी दुनिया में सफल नहीं हो सकेंगे। पर इन सबकी सफलता देख कर दुनिया के साथ साथ मैं खुद भी हैरान रह गया। पंजाबी फ़िल्मी दुनिया के महारथी भाग सिंह ने किस तरह अपनी बेटी बरखा को पत्रकारिता की बारीकियों से अवगत करा कर एक कुआलिफाईड पत्रकार बनाया। अभिनय में नई जान डालने 
पठानकोट में गौरव सग्गी के भक्ति रस में झूमते भक्त 
वाली अपनी धर्मपत्नी कमला भाग सिंह के साथ किस तरह कदम दर कदम मिला कर कठिन से कठिन रास्तों पर चल कर सफलता की ऊंचाइयों को छुआ यह किसी करामत से कम नहीं। मुझे उनके परिवार के साथ इतय एक एक पल बिना किसी कोशिश के अब तक याद है। भाग सिंह जी का गोरा   रंग और मेहंदी रंगी भूरी दाड़ी कुल मिलकर उनकी शख्सियत बहुत ही आकर्षक लगती रिटायर्मेंट के बाद इस तरह की  सहेज पान तभी संभव होता है जब दिल और दिमाग के ख्याल भी बहुत खूबसूरत हों। ज़िन्दगी के सभी रंगों को उन्हों ने मुस्करा कर समझा। हर मुश्किल को उन्होंने हर बार सुस्वागतम कहा। एक आम इंसान की तरह ज़िंदगी जीते जीते वह अचानक ही अपनी सहजता के कारण खास हो जाते। मुझे याद है एक बार एक फ़िल्मी मेले के आयोजन को लेकर कुछ पत्रकार दोस्तों ने काफी कुछ विरोध में लिखा पर जब वे भाग सिंह जी के सम्पर्क में आये तो उनका नजरिया पूरी तरह बदल गया। वे समझ गए कि मामले को देखना अपनी अपनी सोच पर भी निर्भर करता है। जादू केवल जादूगर की छड़ी में नहीं शब्दों में भी होता है। बाद में यह विरोध दोस्ती में बदल गया। वे पत्रकार दोस्त दिल्ली से उन्हें मिलने विशेष तौर पर चंडीगढ़ आते।
लुधियाना का गौरव सग्गी 
इसी तरह दारा सिंह जी ने भी धमकियों और चुनौतियों को बहुत ही सहजता से सवीकार करके ज़िन्दगी जीने के नए अदाज़ सिखाये। चंडीगढ़ में दारा स्टूडियो की स्थापना का काम आसान नहीं था। मुझे पता चला कि उन्हें उतनी जगह नहीं मिली जितनी वह चाहते थे। किसी सनसनीखेज़ खबर की चाह में मैंने दारा जी से इसी मुद्दे पर सवाल कर दिया। दारा जी मुझे देखकर मुस्कराए और बहुत ही सहजता से बोले अगर सरकार यह जगह भी न देती तो हम क्या कर लेते? दारा जी जैसे महान लोगों ने जिंदगी को जो सलीके और सबक सिखाये उनकी अहमियत वक्त के साथ साथ लगातार बढती रहेगी। उनके पास बैठ कर, उनसे बातें करके एक नई ऊर्जा का अहसास होता था।
आज अचानक यह सब कुछ मुझे याद आ रहा है एक नए युवा चेहरे को देख कर। लुधियाना का गौरव सग्गी भी फ़िल्मी दुनिया को समर्पित है लेकिन पूरी तरह सात्विक रहते हुए। तकरीबन तकरीबन हर रोज़ उपवास, हर रोज़ पूजा पाठ, हर रात्रि मेडिटेशन। सोने में चाहे आधी रात हो जाये लेकिनउठना वही रात को दो बजे और ठंडे पानी से नहा कर रम जाना पूजा पाठ में। मेडिटेशन, रियाज़ या फिर शूटिंग, रिकार्डिंग या कोई और परफोर्मेंस बस यही है गौरव की दिनचर्या। मैंने कभी गौरव को आम लडकों की तरह इधर उधर आलतू फालतू बातों में नहीं देखा। लुधियाना से मुम्बई और मुम्बई से विदेश तक यही है उसका लाइफ स्टाइल।
कहते हैं धरती गोल भी है बहुत छोटी भी। बस इसी सिद्धांत पर एक बार हमारी मुलाकात पठानकोट में हुई। सुबह मूंह अँधेरे से लेकर देर शाम तक हम एक साथ रहे। यह सब किसी प्रोजेक्ट को लेकर था और इसके बारे में वहां शायद किसी को खबर भी नहीं थी लेकिन हमें वहां बिना किसी पूर्व कार्यक्रम के जाना पड़ा एक ही आयोजन में। हम सब ने जलपान किया लेकिन गौरव का उपवास था। खाना तो दूर जल या चाये की एक बूँद भी नहीं। अचानक ही मेरे सामने किसी आयोजक ने मंच पर गौरव का नाम अनाऊंस करवा दिया और उसके बाद कमरे में आ कर कहा कि अब आप मंच पर आ जाइये अगली बारी आपकी है। सुन कर मुझे चिंता हुई। मुझे मालूम था कि गौरव ने सुबह से कुछ नहीं खाया। 
चाये या पानी का एक घूँट भी नहीं। मुझे लगा कि शायद यह लड़का कहीं मंच पर गिर न पड़े। इसके साथ ही न वहां गौरव की टीम थी न ह साज़ और संगीत का पर्याप्त प्रबंध। पर गौरव के चेहरे पर न चिंता, न डर, न ही घबराहट। आशंकित मन के साथ कुछ ही पलों के बाद मैं भी पीछे पीछे बाहर बने मंच पर चला गया।वहां मेरे देखते ही देखते गौरव ने भगवान् का नाम लेकर अपना गायन शुरू कर दिया। कुछ ही पलों में वहां मौजूद सभी लोग पहले तो मस्त हुए फिर उठ कर गौरव के साथ साथ झूमने लगे।मुझे वह दिन अब भी याद आता है तो मुझे फिर फिर हैरानी होने लगती है। सुबह से लेकर रात तक मैंने गौरव पर से आँख नहीं हटाई तां कि वह छुप कर कहीं कुछ खा तो नहीं रहा पर सचमुच उसने सारा दिन कुछ नहीं खाया-पीया। मुझे लगता है कि इस के बावजूद इतनी अच्छी परफारमेंस किसी दैवी शक्ति से ही संभव हो सकी। गौरतलब है की मेडिटेशन करने वालों की कार्यक्षमता अक्सर बढ़ जाती है। मन की शक्ति एकाग्र हो जाने से उनकी योग्यता विकसित होती है।यही कारण है गौरव एक्टिंग में भी काम कर रहा है और गीत संगीत में भी। इसके साथ ही कैमरे की बारीकियों  को भी वह बहुत ही अच्छी तरह से समझता है। अपनी लोकप्रिय एल्बम "रब दा सहारा" में उसने गायन और अभिनय दोनों में अपना जादू दिखाया है। आखिर में एक बात और इस सबके लिए वह अपने पिता अश्विनी सग्गी और माता के आशीर्वाद को ही एक वरदान मानता है।-रेक्टर कथूरिया 

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तेज़ी से बुलंदियां छू रहा गौरव सग्गी 

Wednesday, December 12, 2012

पंडि‍त रवि‍ शंकर के नि‍धन पर गहरे दुःख की लहर

 महान संगीतज्ञ पंडि‍त रवि‍ शंकर के नि‍धन पर हर तरफ गहरे दुःख की लहर महसूस की जा रही है।राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री और बहुत से अन्य प्रमुख लोगोंने     दुःख की इस घड़ी में उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये हैं। 
राष्‍ट्रपति ने पं. रविशंकर के निधन पर शोक व्‍यक्‍त किया 

राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने पं. रविशंकर के निधन पर शोक जताया। शोक संदेश में राष्‍ट्रपति ने कहा, ''पंडित जी प्रतिभाशाली व्‍यक्ति थे और उन्‍होंने भारत तथा विश्‍व को अपने अलौकिक संगीत से आनंदित किया। उन्‍होंने भारतीय शास्‍त्रीय संगीत में अपनी अमिट छाप छोड़ी तथा विश्‍व में भारतीय शास्‍त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाया। संगीत के क्षेत्र में उनकी कमी को भरा जाना मुश्किल है।'' 

उप राष्‍ट्रपति ने महान सितार वादक पंडित रवि शंकर के निधन पर शोक व्‍यक्‍त किया 

भारत के उपराष्‍ट्रपति श्री एम. हामिद अंसारी ने महान सितार वादक पंडित रवि शंकर के निधन पर शोक व्‍यक्‍त किया है। अपने संदेश में उन्‍होने कहा कि पंडित जी एक प्रतिष्ठित व्‍यक्ति थे जो अपने जीवन में ही संगीत की दुनिया के एक महान कलाकार बन गए थे। उनकी महानता को सभी जानते थे। उनका नाम भारतीय संगीत का पर्याय बन गया था। उनके निधन से संगीत की दुनिया में खालीपन आ गया है जिसे शायद ही भरा जा सकता है। उनका कार्य अमर है और यह दुनियाभर में उनके लाखों प्रशंसकों को प्रेरित करता रहेगा तथा आनंद देता रहेगा । 
उपराष्‍ट्रपति का शोक संदेश इस प्रकार है: 
' मुझे पंडित रवि शंकर के निधन पर बेहद अफसोस है। 

पंडित जी एक प्रतिष्ठित व्‍यक्ति थे जो अपने जीवन में ही संगीत की दुनिया के एक महान कलाकार बन गए थे। उनकी महानता को सभी जानते थे। उनका नाम भारतीय संगीत का पर्याय बन गया था। उनके निधन से संगीन की दुनिया में खालीपन आ गया है जिसे शायद ही भरा जा सकता है। उनका कार्य अमर है और यह दुनियाभर में उनके लाखों प्रशंसकों को प्रेरित करता रहेगा तथा आनंद देता रहेगा। 

मैं उनके परिवार और प्रशंसको के प्रति अपनी संवेदना व्‍यक्‍त करता हूं। ईश्‍वरउन्‍हें यह दुख सहने की शक्ति और धैर्य प्रदान करे।' . (PIB) 12-दिसंबर-2012 18:18 IST

प्रधानमंत्री ने महान सितारवादक पंडित रविशंकर के निधन पर दुःख व्‍यक्‍त किया 

प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने जाने माने सितारवादक और संगीतकार पंडित रविशंकर के निधन पर दुःख व्‍यक्‍त किया है। अपने संवेदना संदेश में प्रधानमंत्री ने उन्‍हें दुनिया भर में भारत की संस्‍कृति का प्रसार करने वाला सबसे प्रभावकारी प्रतिनिधि बताया। 

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत रत्‍न पंडित रविशंकर के निधन से उन्‍हें गहरा दुःख पहुंचा है। भारत ने एक महान सपूत और सितार की दुनिया ने एक सक्षम प्रतिनिधि खो दिया है। उनके निधन से संगीत के नभ की चमकती रोशनी बुझ गई है। उन्‍होंने शोक संतप्‍त परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्‍यक्‍त की। 

प्रधानमंत्री ने कहा कि पंडित रविशंकर से व्‍यक्तिगत तौर पर परिचित होने और दो बार उनके साथ राज्‍य सभा के सदस्‍य रहने के लिए वे खुद को धन्‍य मानते हैं। देश को न केवल उनके संगीत का आनंद लेने का सौभाग्‍य मिला बल्कि एक प्रभावकारी सांस्‍कृतिक प्रतिनिधि से भी साक्षात्‍कार करने का अवसर मिला। उनके दयालु स्‍वभाव और संगीत में उनके महारथ के कारण दो सभ्‍यताओं के बीच संपर्क बढ़ाने में मदद मिली। 

उन्‍होंने प्रार्थना की कि ईश्‍वर उनकी आत्‍मा को शांति प्रदान करने के साथ-साथ परिवार के सदस्‍यों को इस दुःख को बर्दाश्‍त करने का साहस प्रदान करे। 

पंडि‍त रवि‍शंकर को दुनि‍या कभी भुला नहीं पाएगी – श्रीमती चंद्रेश कुमारी कटोच 

संस्‍कृति‍मंत्री श्रीमती चंद्रेश कुमारी कटोच ने भारत के महान संगीतज्ञ पंडि‍त रवि‍ शंकर के नि‍धन पर गहरा शोक जताया है। उनके नि‍धन को देश की बड़ीक्षति‍ बताते हुए श्रीमती कटोच ने संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान खासकर पूरब और पश्‍चि‍म को वि‍लक्षण संगीत के जरि‍ए जोड़ने की कोशि‍श को वि‍शि‍ष्‍ट रूप से दर्शाया। 

श्रीमती कटोच ने कहा कि‍पंडि‍त रवि‍शंकर ने अपनी वि‍लक्षण संगीत प्रति‍भा से न केवल भाईचारा बढ़ाया बल्‍कि‍स्‍थानीय संगीत को राष्‍ट्रीय और राष्‍ट्रीय संगीत को अंतर्राष्‍ट्रीय जगत से जोड़ दि‍या। 

कई पुरस्‍कारों से सम्‍मानि‍त पंडि‍त रवि‍शंकर देश के सर्वोच्‍च् नागरि‍क सम्‍मान भारतरत्‍न से भी सम्‍मानि‍त थे। संस्‍कृति‍के क्षेत्र में बेहतरीन उपलब्‍धि‍यों एवं योगदान के लि‍ए उन्‍हें पहला टैगोर सांस्‍कृति‍क सदभावना पुरस्‍कार – 2012 से भी सम्‍मानि‍त कि‍या गया।  (PIB)